एक बार जाकर, बार-बार जाने को मन करता है वहां : हाजी वारिस
देश-दुनिया से पहुंचे अकीदतमंद, अमन-ओ-इंसानियत की मांगी दुआएं
उस खानकाह का रूहानी नजारा ही कुछ अलग है। यहां जो शख्स एक बार जाता है, उसकी तमन्ना बार-बार लौटने की होती है। यही वजह है कि यहां वर्षों से सालाना उर्स का सिलसिला चलता आ रहा है, जिसमें देश-दुनिया से अकीदतमंद जुटते हैं और अमन-खैर की दुआएं मांगते हैं।
हाजी वसीम फारूखी नक्शबंदी का जुड़ाव
उज्जैन निवासी हाजी वसीम फारूखी नक्शबंदी बताते हैं कि इस नूरानी महफिल में शामिल होने के लिए वे पूरे लवाजमे के साथ पहुंचे हैं। उनके साथ कई मुरीद भी इस उर्स में शरीक होने के लिए अंबाला आए हैं।
हाजी वसीम कहते हैं कि "इमाम- ए- रब्बानी मुजद्दिद अल्फ सानी शेख अहमद फ़ारूक़ी सरहिन्दी रहमतुल्लाहि अलैह की दास्तां बहुत लंबी और पुरानी है। कुरान शरीफ में की जाने वाली तब्दीलियों को लेकर वे बादशाह अकबर से भी टकराने को तैयार हो गए थे।"
खानकाह से गहरा नाता
हाजी वसीम ने बताया कि उनके एक फूफीजाद भाई ने उन्हें इस सिलसिले से जोड़ा और तभी से उनका दिल यहीं लग गया। बड़ी तादाद में मुरीदीन की व्यस्तता के बावजूद वे वक्त निकालकर इस खानकाह की चौखट पर हाजिरी देते रहते हैं।
खास यात्रा कार्यक्रम
इस बार हाजी वसीम फारूखी खासतौर पर अंबाला उर्स में शरीक होने पहुंचे हैं। इस सफर के दौरान वे दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाहि अलैह की जियारत भी करेंगे।
📌 उर्स की खासियतें
- दुनियाभर से अकीदतमंदों की मौजूदगी
- अमन-खैर और इंसानियत की दुआएं
- खानकाह की रूहानी महफिल का अनोखा अनुभव
- सालों से जारी सिलसिला
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