राहत इंदौरी की बरसी पर खास : राहत जहां की..!
🕯️ख़िराज-ए-अकीदत |✍️ खान आशु
एक आर्टिस्ट, एक शिक्षक, एक शायर... जिस किरदार को उन्होंने छुआ, अमर कर दिया। डॉ. राहत इंदौरी ने जब कैनवास पर अपना फन उकेरा तो उस ऊंचाई तक पहुंचे, जहां दुनिया के मारूफ चित्रकार मकबूल फ़िदा हुसैन ने भी उनकी कूंची की तारीफ में कोताही नहीं बरती। हुसैन जब भी इंदौर में होते, या जब राहत मुंबई में होते तो दोनों के बीच मुलाकात जरूर होती। फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की दीवानगी में जब हुसैन ने फिल्मी पर्दे पर अपने रंग बिखेरे तो इन्हें गजलों के रूप में गीतों को आकार डॉ. राहत इंदौरी ने ही दिया।
उर्दू साहित्य की तालीम देने के लिए जब वे इंदौर की नामवर शिक्षा संस्था इस्लामिया करीमिया सोसाइटी से जुड़े तो स्टूडेंट्स कोई सबक पढ़ने से ज्यादा राहत की राहत बटोरने में तलबगार दिखाई दिए। उनके स्टूडेंट्स आज भी अपने इस उस्ताद को अच्छी और बेहतर यादों में सजाए रखते हैं। उनके साथ काम करने वाले टीचर भी इस बात का फख्र महसूस करते हैं कि उन्होंने कभी राहत के भी काम किया था।
मंच का सिलसिला छोटे से शहर देवास से शुरू हुआ... प्रदेश की राजधानी भोपाल से होते हुए देश की धड़कन दिल्ली तक और फिर दुनिया के हर देश और उसके शहर तक उन्होंने साबित कर दिया कि अगर कहीं राहत है तो यहीं है और सिर्फ यहीं है। मंचों पर उनकी मौजूदगी ही किसी महफिल की कामयाबी की गारंटी हुआ करती थी। यही वजह है कि उनके दुनिया से विदा होने के बाद मंच वीरान और सूने दिखाई देने लगे हैं। डॉ. राहत इंदौरी के साथ यह भी जोड़ा जाता है कि वे जब तक दुनिया में रहे मंचों के शिखर पर रहे, और जब इस दुनिया से विदा हुए तो शिखर पर बरकरारी के साथ के साथ ही रुखसत हुए।
राहत ने फिल्मों की दुनिया में जब कदम रखा तो उस दौर के महा निर्देशक महेश भट्ट और प्रचलित संगीतकार अन्नू मलिक को अपनी कला का मुरीद बना दिया। सफर आगे बढ़ा तो करीब, मिशन कश्मीर, मुन्ना भाई एमबीबीएस जैसे दर्जनों फिल्मों के गीतों में अपनी पहचान छोड़ गए। सिलसिला लंबा और कामयाब चलता, लेकिन मंच के एक शायर को बंद कमरों का गीतकार पसंद नहीं आया। डॉ. राहत इंदौरी फिर मंचों के और तत्काल दाद देने वाले रसिक श्रोताओं के हो गए।
जब छोटे पर्दे की तरफ उनका रुख हुआ तो द कपिल शर्मा शो... की हास्य भरी टीवी मौजूदगी में डॉ. राहत इंदौरी इकलौते शायर बने, जो एक नहीं दो बार इस मंच पर अवतरित हुए। पहली बार कुमार विश्वास और शबीना अदीब के साथ जुगलबंदी करते नजर आए और दूसरी मर्तबा उन्होंने अशोक चक्रधर जैसे प्रख्यात कवि के साथ मौजूदगी दिखाई।
युवा पीढ़ी की अगंभीरता के बीच उनकी मनचाही बात करने के लिए अब डॉ. राहत इंदौरी सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर मौजूद हैं। उनके रहने के दौर से ज्यादा उनके दुनिया से रुखसत होने के बाद भी वे लोगों के दिलों में हैं, यादों में हैं, बातों में हैं।
सजते हैं राहत के नाम के मेले
डॉ. राहत इंदौरी के दुनिया से रुखसत होने के बाद उनको लोगों के दिलों में जिंदा रखने का अलम उनके बेटों फैसल और सतलज राहत ने उठा रखा है। बेटी शिबली राहत भी उनकी हमकदम हैं। डॉ. राहत इंदौरी फाउंडेशन नामक संस्था से हर साल पहली जनवरी को बड़ी महफिल सजाई जा रही है। जिसमें दुनिया के नामवर शायर और अदीब जुटकर अपनी खिराज पेश कर रहे हैं। 11 अगस्त वह दिन है, जब दुनिया से राहत रुखसत हो गई। इसी दिन को जहन और लोगों के दिलों में रखने के लिए इंदौर ने एक बड़ी महफिल सजाई है। जिसमें राहत की बात होगी, राहत का अंदाज होगा और वह होगा जो राहत के बहुत करीब हुआ करता था। हमारी तरफ से भी दुनिया के इस महबूब शायर को खिराज ए अकीदत।
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