शब्दों में संवेदना, लेखनी में क्रांति — गुरुदेव काश्यप चौबे को श्रद्धांजलि
🙏आपने सिखाया कि शब्द समाज बदल सकते हैं — नमन पापा जी
11 अगस्त, पुण्यतिथि पर विशेष |✍️ देव चौबे
11 अगस्त 2016… यह तारीख़ मेरे लिए केवल कैलेंडर का एक अंक नहीं, बल्कि जीवन का वह अमिट पन्ना है, जिस पर स्मृतियों की स्याही कभी सूखती नहीं। नौ वर्ष पहले का यही दिन था, जब मेरे पापा जी — गुरुदेव काश्यप चौबे — हमें हमेशा के लिए छोड़कर इस दुनिया से रुख़सत हो गए। इसके साथ ही पाँच दशकों तक लोगों के दिलों को झकझोरने वाली उनकी सशक्त लेखनी भी सदा के लिए मौन हो गई।
संयोग देखिए, उनका जन्म 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस के दिन हुआ था और वे हमेशा आज़ाद ख़याल परिंदे की तरह अपने शब्दों की बाज़ीगरी से लोगों को मोहित करते रहे। एक दिन वे अपने जन्मदिन से केवल चार दिन पहले, उतनी ही बेफ़िक्री से हमसे विदा हो गए। वे मेरे लिए केवल पिता नहीं, बल्कि जीवन-गुरु, विचारों के दीप और शब्दों के जादूगर थे।
साहित्य और पत्रकारिता में अद्वितीय योगदान
अविभाजित मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकार गुरुदेव (काश्यप) चौबे की लेखनी में संवेदना के साथ-साथ समय का ताप और करारा प्रहार दोनों मौजूद रहते थे।
- उनका पहला कविता संग्रह “धूप का एक दिन” मध्यप्रदेश शासन द्वारा सराहा और पुरस्कृत किया गया।
- “उत्कल अभिशप्त” में उन्होंने उड़ीसा के भीषण अकाल और वहाँ के जनजीवन को इतना जीवंत चित्रित किया कि पाठक भूख और पीड़ा को महसूस करने लगता था।
- उन्होंने लोकप्रिय काव्य-संकलन “नैवेद्य” और “मीठे कनेर का दरख़्त” का संकलन-संपादन किया, जिसमें अपने समकालीन साहित्यकारों बच्चू जांजगीरी, रम्मू श्रीवास्तव, जयशंकर शर्मा ‘नीरव’, नारायणलाल परमार, सत्येंद्र गुमाश्ता, राज नारायण मिश्र और आनंदीसहाय शुक्ल की श्रेष्ठ रचनाएँ शामिल कीं।
आहत सूर्य और वियतनाम से जुड़ाव
उनका वियतनाम पर आधारित काव्य-संग्रह “आहत सूर्य” इतना चर्चित हुआ कि वियतनाम के तत्कालीन राष्ट्रपति ने उन्हें पत्र लिखकर अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं और साधुवाद दिया।
नक्सलवाद के जनक चारु मजूमदार की आत्महत्या पर लिखी उनकी कविता हिंदी साहित्य के इतिहास में आज भी दर्ज है। एक कविगोष्ठी में इस कविता का पाठ सुनकर पूरा सभागार स्तब्ध रह गया था।
पत्रकारिता में सिद्धांत और निडरता
- उनका मानना था— “कठिन और क्लिष्ट लिखना आसान है, लेकिन सरल और सहज शब्दों में लिखना कठिन।”
- वे अनावश्यक अंग्रेज़ी शब्दों के प्रयोग के विरोधी थे और स्थानीय बोली-बानी को महत्व देते थे।
- मदर टेरेसा ने जब छत्तीसगढ़ में अपने भाषण का स्थानीय अनुवाद करवाना चाहा, तो इसके लिए पिताजी को ही बुलवाया।
वे कम बोलने वाले, अनुशासनप्रिय और अद्भुत स्मरणशक्ति के धनी थे। सत्ता के गलियारों में उनकी कलम का बेधड़क आना-जाना था, लेकिन उन्होंने कभी पद या लाभ की आकांक्षा नहीं रखी। कलेक्टर से लेकर मुख्यमंत्री तक लोग उनसे विचार और सलाह लेने आते थे।
जीवन से मिला संदेश
पापा जी ने हमें सिखाया कि शब्द केवल अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि परिवर्तन की शक्ति हैं। उनकी सादगी, स्पष्टता और निर्भीकता हमारे लिए केवल स्मृति नहीं, बल्कि मार्गदर्शन है।
हमारी श्रद्धांजलि
"आपने हमें सिखाया कि शब्द केवल वाक्य नहीं, बल्कि समाज बदलने की शक्ति हैं।
आपके दिए मूल्य, दृष्टि और शब्दों का संस्कार ही हमारी सबसे बड़ी विरासत है।"लेखक : देव चौबे (गुरुदेव काश्यप चौबे) के पुत्र हैं।
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