इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद...
- मोहर्रम 1447 हिजरी के अवसर पर विशेष
✍️ नौशाद कुरैशी
> "क़त्ले-हुसैन असल में मर्गे-यज़ीद है,
इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद..."
— मुहम्मद इक़बाल
✦ एक विचार जो समय से परे है
इस्लामी कैलेंडर का आरंभ जिस महीने से होता है, वह केवल एक गणनात्मक महीना नहीं, बल्कि त्याग, बलिदान और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक है। मोहर्रम की दसवीं तारीख को कर्बला में घटित हुई घटना केवल इतिहास नहीं, बल्कि एक सदियों तक जीवित रहने वाला संदेश है — सत्य की राह अकेली हो सकती है, लेकिन वह सबसे शक्तिशाली होती है।
✦ सत्ता के सामने सच्चाई का खड़ा होना
सन 61 हिजरी (680 ई.) में करबला की तपती रेत पर इमाम हुसैन (र.अ.), जो पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) के नवासे थे, उन्हें उनके परिवार और साथियों सहित यज़ीद की सेना ने घेर लिया।
यज़ीद चाहता था कि इमाम हुसैन उसके शासन को दीन के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार कर लें, लेकिन हुसैन ने स्पष्ट शब्दों में कहा:
> "ज़िल्लत की ज़िंदगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है।"
इमाम हुसैन की शहादत इस बात की गवाही बन गई कि इस्लाम की हिफाज़त तलवार से नहीं, ईमान से होती है।
इस्लाम की पुनर्जीवन-शक्ति: हर कर्बला के बाद
कर्बला केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि एक मूल्य-प्रणाली की विजयगाथा है।
जब-जब समाज में अन्याय, अत्याचार और स्वार्थ हावी होते हैं, तब-तब कोई "हुसैन" खड़ा होता है, और कोई न कोई "कर्बला" फिर घटती है।
इसीलिए इक़बाल ने कहा —
> "इस्लाम ज़िन्दा होता है हर कर्बला के बाद..."
क्योंकि हर दौर में कर्बला केवल एक जगह नहीं, एक विचारधारा बन जाती है।
✦ मोहर्रम: शोक नहीं, शौर्य और सीख का महीना
मोहर्रम को अक्सर केवल मातम का महीना मान लिया जाता है, जबकि यह आत्मनिरीक्षण, जागरूकता और संघर्ष के संकल्प का समय है।
इस महीने में:
- मुसलमान रोज़े रखते हैं (विशेषतः 9वीं और 10वीं या 10वीं और 11वीं)
- इबादत, क़ुरआन पाठ और सदक़ा जैसे नेक काम करते हैं
- हुसैनी किरदार को अपनाने का प्रयास करते हैं — जो बिना तलवार उठाए भी इतिहास बदल सकता है
✦ करबला: एक सार्वभौमिक सन्देश
हुसैन का बलिदान केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि हर इंसाफ़पसंद इंसान के लिए प्रेरणा है।
कर्बला का संदेश यह है कि:
- सच छोटा हो सकता है, लेकिन कमज़ोर नहीं
- ज़ालिम की ताकत क्षणिक है, लेकिन मज़लूम की सच्चाई चिरस्थायी
- धर्म, सत्ता का अनुचर नहीं, नैतिकता का प्रहरी है
✦ ज़िंदा है हुसैन आज भी
आज जब दुनिया फिरक़ावाराना टकराव, अन्याय, और स्वार्थ की आग में झुलस रही है - कर्बला का पैग़ाम पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है।
हमें न केवल मोहर्रम में, बल्कि सालभर हुसैनी उसूलों पर चलने की ज़रूरत है -
जहाँ सच के लिए डट जाना हो, भले ही साथ कोई न हो।
> "हुसैन वो चराग़ है जो हर यज़ीदियत के अंधेरे में रौशनी बन कर जलता है..."
📌 मोहर्रम हमें यह याद दिलाता है कि धर्म का मर्म केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि न्याय, संघर्ष और बलिदान है। इस्लाम ज़िन्दा है — क्योंकि कर्बला आज भी ज़िन्दा है।
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