बंदियों को अपराध नहीं, आत्ममंथन की जरूरत : न्यायाधीश हिदायत उल्ला खान


उपजेल देपालपुर में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन, न्यायाधीश ने दी पुनर्वास की राह पर लौटने की प्रेरणा

📍 देपालपुर | ✍️सप्तग्रह रिपोर्टर 

बिजनेस राजधानी इंदौर के उपजेल देपालपुर में सोमवार को आयोजित विधिक साक्षरता शिविर में तहसील विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष एवं जिला न्यायाधीश हिदायत उल्ला खान ने बंदियों को सकारात्मक जीवन की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि “अपराध केवल एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसका असर पूरे परिवार और समाज पर पड़ता है। इसलिए बंदियों को आत्ममंथन कर अपनी गलतियों से सीख लेकर समाज की मुख्यधारा से जुड़ने की आवश्यकता है।”

🧾 बंदियों को विधिक अधिकारों की जानकारी

इस शिविर का उद्देश्य बंदियों को उनके कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक करना और उन्हें समाजोपयोगी नागरिक के रूप में पुनः स्थापित करने के लिए प्रेरित करना था। न्यायाधीश हिदायत उल्ला खान ने स्पष्ट किया कि प्रत्येक बंदी को न केवल विधिक सहायता प्राप्त करने का हक है, बल्कि उन्हें अपने परिजनों से मिलने-जुलने का भी पूरा अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि सकारात्मक सोच अपनाकर बंदी न केवल अपना भविष्य सुधार सकते हैं, बल्कि अपने परिवार और देश की दिशा भी बदल सकते हैं।

🏥 स्वास्थ्य और पुनर्वास पर भी हुआ संवाद

शिविर के दौरान सहायक जेल अधीक्षक आर.एस. कुशवाह ने बंदियों को संतुलित आहार, स्वास्थ्य सेवाओं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियाँ दीं। इस अवसर पर सीनियर सिविल जज/न्यायिक मजिस्ट्रेट रिजवाना कौसर, सुमित्रा ताहेड़ और दिव्या श्रीवास्तव की उपस्थिति ने शिविर की गंभीरता और प्रभावशीलता को और बढ़ाया।

शिविर में एएसआई रामेश्वर झाड़िया, मुख्य प्रहरी सैय्यद इसरार अली, प्रहरी विवेक शर्मा, महिला प्रहरी एकता पटेलआरती सोलिया, टेक्निकल असिस्टेंट इंदल राय और नायब नाजिर दिलीप यादव सहित संपूर्ण जेल स्टाफ की सक्रिय भागीदारी रही।


💬 बंदियों की भागीदारी और अनुभव

कार्यक्रम के दौरान बंदियों ने भी उत्साहपूर्वक अपने विचार साझा किए और विधिक सहायता से जुड़े प्रश्नों के उत्तर पाकर संतोष व्यक्त किया। आयोजकों के अनुसार, इस शिविर के माध्यम से बंदियों में नई ऊर्जा, आत्मविश्वास और जिम्मेदारी की भावना का संचार हुआ है।

जेल प्रशासन और विधिक सेवा प्राधिकरण ने इस पहल को पुनर्वास की दिशा में एक प्रभावशाली कदम बताया है, जो बंदियों को समाज की मुख्यधारा में पुनः स्थापित करने के प्रयासों को मजबूती प्रदान करेगा।



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