चाय पर चर्चा: जब न्यायपालिका और पत्रकारिता ने मिलाया हाथ, देपालपुर में जागरूक संवाद की मिसाल
लेखक: [✍️नौशाद कुरैशी]
"एक कप चाय क्या बदल सकती है?"—यह सवाल कई बार सुना होगा। पर देपालपुर सिविल न्यायालय में अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस के अवसर पर जो दृश्य सामने आया, उसने इस प्रश्न का उत्तर पूरे आत्मविश्वास से दिया। यहाँ चाय केवल पेय नहीं, संवाद का सेतु बन गई—ऐसा संवाद जो लोकतंत्र के दो मजबूत स्तंभों न्यायपालिका और पत्रकारिता के बीच आत्मीयता और उत्तरदायित्व को गहराई से जोड़ गया।
अनूठा आयोजन: न्यायालय में संवाद का नया अध्याय
21 मई को देपालपुर तहसील विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष एवं जिला न्यायाधीश हिदायत उल्ला खान के विश्राम कक्ष में "चाय पर चर्चा" नामक एक विशिष्ट आयोजन हुआ। देपालपुर प्रेस क्लब के प्रमुख पत्रकारों की उपस्थिति ने इस आयोजन को जीवंत बना दिया। यह कोई औपचारिक मीटिंग नहीं थी, बल्कि एक सौहार्द्रपूर्ण संवाद था जहाँ न्याय और पत्रकारिता की सामाजिक भूमिका पर विचारों का आदान-प्रदान हुआ।
चाय की चुस्कियों के साथ गंभीर चर्चा
कार्यक्रम में जिला न्यायाधीश हिदायत उल्ला खान ने कहा, "जागरूक पत्रकारिता समाज में सकारात्मक परिवर्तन की राह बनाती है।" उन्होंने मीडिया की जिम्मेदारी को रेखांकित करते हुए कहा कि पत्रकारिता और न्यायपालिका—दोनों ही लोकतंत्र की रीढ़ हैं, और इनका पारस्परिक सहयोग लोकतांत्रिक व्यवस्था को अधिक पारदर्शी व जवाबदेह बनाता है।
सम्मान के प्रतीक: डायरी और कलम
कार्यक्रम के दौरान न्यायाधीश खान ने प्रेस क्लब अध्यक्ष संदीप सेन को मध्यप्रदेश शासन की विशेष डायरी तथा सचिव अब्दुल मतीन फारूकी को एक विशिष्ट कलम भेंट की। यह केवल औपचारिक भेंट नहीं, बल्कि न्याय और पत्रकारिता के बीच विश्वास और सम्मान के प्रतीक थे।
पत्रकारों की गरिमामयी उपस्थिति
इस अवसर पर देपालपुर प्रेस क्लब के वरिष्ठ पत्रकारों—अजय जैन, श्रीराम बारोड़, भारतसिंह तंवर, अजय भावसार, सोमिल मेहता, कृष्णा बाला जाधव, दिलीप यादव, मनोज अग्रवाल, निलेश चौहान, मोइनुद्दीन कुरैशी, दरबारसिंह ठाकुर, दीपक सेन, अंकित भोला परमार सहित अन्य की सहभागिता ने कार्यक्रम को सार्थकता प्रदान की।
एक नई शुरुआत का प्रतीक
"चाय पर चर्चा" देपालपुर के सामाजिक इतिहास में एक सांस्कृतिक पहल बन गई है। इस आयोजन ने यह दिखा दिया कि संवाद केवल भाषणों या मंचों से नहीं, बल्कि आत्मीयता और समान दृष्टिकोण से भी हो सकता है। समाज के दो सशक्त अंगों का ऐसा सहयोग—जहाँ तकरार नहीं, बल्कि समझ और सरोकार की बात हो—वास्तव में प्रेरणादायक है।
देपालपुर न्यायालय की पहल बनेगी प्रेरणा
यह आयोजन इस बात का प्रतीक बन गया कि एक कप चाय के बहाने भी समाज में बड़े परिवर्तन की पहल की जा सकती है। देपालपुर न्यायालय की यह पहल अन्य संस्थाओं के लिए भी एक प्रेरणा हो सकती है—जहाँ संवाद हो, सम्मान हो, और साझा उत्तरदायित्व की भावना हो।
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