श्रद्धांजलि: रविंद्र बाबू—तस्वीरों के पीछे मुस्कुराता एक फरिश्ता


ज भी कानों में गूंज रही है वो मधुर आवाज़—"नौशाद सर, कैसे हैं भाई साहब?"

वो सिर्फ एक पुकार नहीं थी, वो अपनापन था। वो सम्मान था, जो रविंद्र सिंह ‘विक्की’ जी हर किसी को बिना किसी औपचारिकता के दे जाया करते थे। मैं उन्हें स्नेह से ‘रविंद्र बाबू’ कहता था और वे मुझे आदरपूर्वक ‘नौशाद सर’। साथ में काम करने का सिलसिला भले ही समय और नौकरी की दिशा में पीछे छूट गया हो, लेकिन उनका स्नेह, अपनापन और सरल स्वभाव कभी नहीं छूटा।

यादें कई हैं... और आज एक के बाद एक मन के गलियारे में दस्तक दे रही हैं। याद है, जब हम एक साथ स्कूटी पर सवार होकर राजधानी भोपाल के वीआईपी इलाकों—श्यामला हिल्स, चार इमली, और 74 बंगले—में मंत्रियों के इंटरव्यू के लिए निकलते थे। आमने-सामने की तस्वीरें वो अपने कैमरे में यूं कैद कर लेते थे, मानो वक्त को थाम लिया हो। उनकी हर क्लिक के पीछे एक नजर थी—जो खबर से पहले इंसान को देखती थी।

रविंद्र बाबू हंसमुख थे, सहज थे, तनाव से दूर रहते थे। एक सच्चे इंसान, जो हर किसी से वैसे ही मिलते थे जैसे कोई पुराना दोस्त—बिना दिखावे, बिना दूरी। दरअसल, वो इंसान की शक्ल में एक फरिश्ता थे—और ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं।

आज जब वे हमारे बीच नहीं हैं, तो ऐसा लग रहा है मानो भोपाल की पत्रकारिता का एक मजबूत स्तंभ खामोशी से गिर गया हो। पर जो यादें उन्होंने छोड़ी हैं, जो मुस्कान उनके साथ जुड़ी थी, वह हमेशा जीवित रहेगी।

ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और उनके परिवार को इस असहनीय पीड़ा को सहने की शक्ति दे।

रविंद्र बाबू, आपकी हर तस्वीर, हर मुस्कान, और हर "नौशाद सर" अब हमारी स्मृतियों में अमर है।

आप हमेशा याद आएँगे। 

                                                    ✍️नौशाद कुरैशी 




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