उर्दू अकादमी ने चिन्तामणि मिश्र की साहित्यिक यात्रा को किया याद
- अंबिका प्रसाद पाण्डेय के संयोजन में नवोदित और वरिष्ठ शायरों ने दी प्रस्तुति
- डॉ. नुसरत मेहदी ने 'सिलसिला' की भूमिका और प्रभाव पर डाला प्रकाश
सतना |✍️सप्तग्रह रिपोर्टर
मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद, संस्कृति विभाग के तत्वावधान में जिला अदब गोशा सतना द्वारा "सिलसिला" श्रृंखला के अंतर्गत प्रख्यात साहित्यकार एवं इतिहासकार चिन्तामणि मिश्र को समर्पित स्मरण एवं रचना पाठ का आयोजन लेकवुड स्कूल सतना में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आयोजन जिला समन्वयक अम्बिका प्रसाद पाण्डेय के सहयोग से किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में उर्दू अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने आयोजन की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "सिलसिला" जैसी साहित्यिक संगोष्ठियों के माध्यम से प्रदेश के प्रत्येक जिले में साहित्यिक माहौल को जीवंत बनाया जा रहा है। ये आयोजन नए लेखकों, कवियों और शायरों को मंच प्रदान कर उन्हें सृजन के लिए प्रेरित करते हैं। इस अवसर पर सतना की जानी-मानी साहित्यिक शख्सियत चिन्तामणि मिश्र को साहित्य, संस्कृति, इतिहास और पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके बहुमूल्य योगदान के लिए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ शायर रामनरेश तिवारी ने की, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में शायर सलीम रज़ा मंच पर उपस्थित रहे। प्रारंभ में अरुण कुमार मिश्र ने चिन्तामणि मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी, सांस्कृतिक क्षितिज के आधार स्तंभ तथा प्रेरणादायक व्यक्तित्व के धनी थे। किशोरावस्था से लेकर 89 वर्ष की आयु तक साहित्यिक यात्रा में उन्होंने अनेकों विधाओं में अपनी लेखनी चलाई, जो सतना की साहित्यिक भूमि को उर्वर बनाती है।
रचना पाठ सत्र में प्रस्तुत रचनाएँ :
रामनरेश तिवारी
"न आँखें साथ दें तो दिल की आँखें साथ देती हैं,
मिरे मालिक के घर से कोई नाबीना नहीं आता।"
सलीम रज़ा
"ख़ुशियों से कह दो शोर मचाएँ न इस-क़दर,
मेरे ग़मों को नींद लगी है अभी-अभी।"
सरोज सिंह सूरज
"मुझे मालूम है मेरे लिए क्या क्या मुनासिब है,
उछाला मत करो मेरी तरफ़ इस्लाह का तकिया।"
अरुण कुमार मिश्र
"यूं कि तुम दर्द के एहसास से महफ़ूज़ रहो,
धूल से ढांप लिये पांव के छाले हमने।"
दीपक शर्मा दीप
"अब मोहल्ले के बच्चे बड़े हो गये,
कोई मंदिर गया कोई मस्जिद गया।"
साहिर रीवानी
"हम देश के भक्तों से पूछे तो कोई क्या है,
भारत का हर एक ज़र्रा पाकीज़ा है पावन है।"
कुनाल बरकड़े
"हमारी रूह भटकती है रात भर बाहर,
ये नींद सिर्फ़ हमारा बदन सुलाती है।"
तामेश्वर प्रसाद शुक्ल 'तारक'
"मैं कोई ऐसा कलाम लिख दूँ,
कि दिल की बातें तमाम लिख दूँ।
ग़ज़ल रुबाई क़ता में दिल का,
सिपाहियों को सलाम लिख दूँ।"
सीलेश शील
"अपनी मर्ज़ी से जो चाहे दास्तां समझो,
असल में क्या है कहानी, तुम नहीं जानोगे।"
कार्यक्रम का संचालन अम्बिका प्रसाद पाण्डेय ने किया। कार्यक्रम के अंत में उन्होंने सभी अतिथियों, रचनाकारों एवं श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
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