"चार लफ़्ज़ों में कहें क्यूँ कर फ़साना राम का" — सूफ़ियाना अंदाज़ में गूँजा रामचरित
- राम मर्द-ए-कामिल हैं, सृष्टि के लिए रहमत का प्रतीक: नुसरत मेहदी
भोपाल में उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित सम्मेलन में ग़ज़ल, दास्तानगोई, रक़्से सूफ़ियाना और क़व्वाली के जरिए मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को किया गया जीवंत
विशेष रिपोर्ट |✍️नौशाद कुरैशी
मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी, संस्कृति परिषद और संस्कृति विभाग द्वारा शनिवार शाम रवींद्र भवन, भोपाल के अंजनी सभागृह में एक अनूठे सूफ़ी सम्मेलन का आयोजन किया गया, जिसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को ग़ज़ल, दास्तानगोई, रक़्स और क़व्वाली के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। यह कार्यक्रम भारतीय सांस्कृतिक समरसता और सूफ़ियाना परंपरा का अद्वितीय संगम बन गया।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और अतिथि स्वागत के साथ हुई। अकादमी की निदेशक डॉ. नुसरत मेहदी ने उद्घाटन वक्तव्य में कहा, “राम एक धार्मिक चरित्र से अधिक, सूफ़ी दर्शन में ‘मर्द-ए-कामिल’ के रूप में देखे जाते हैं—ऐसे आदर्श पुरुष जो ईश्वर से जुड़े हों और मानवता के लिए प्रकाशस्तंभ बनें।”
ग़ज़ल से गूँजी रामकथा की सूफ़ियाना सदा
भोपाल के युवा गायक वेद पंड्या ने जब अपनी भावनात्मक आवाज़ में ग़ज़ल— “सारे आलम में मिसाली है घराना राम का, चार लफ़्ज़ों में कहें क्यूँ कर फ़साना राम का”— पेश की, तो श्रोतागण भाव-विभोर हो उठे। उनकी प्रस्तुति केवल गान नहीं, रामचरित की सूफ़ियाना व्याख्या बन गई।
दास्तानगोई में झलकी वीरता और संयम
देश की पहली महिला दास्तानगो फ़ौज़िया ख़ान और फ़ीरोज़ ख़ान की पेशकश ‘दास्ताने राम’ ने कथा को नई ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया। राम-लक्ष्मण संवाद पर आधारित प्रसंग में जब लक्ष्मण क्रोधित होते हैं और राम संयम से कमान को दो भागों में तोड़ते हैं, तो सभागार में सन्नाटा पसर गया—और फिर तालियों की गूंज गूँज उठी।
नृत्य में भाव और भक्ति का संगम
प्रख्यात नृत्यांगना रानी ख़ानम और उनके समूह ने जब सूफ़ियाना नृत्य के माध्यम से राम की मर्यादा और माधुर्य को मंच पर जीवंत किया, तो दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। प्रस्तुति ने भक्ति, सौंदर्य और लय का ऐसा समागम रचा कि पूरा सभागार उस रसानुभूति में बहता गया।
क़व्वाली में हुआ अध्यात्म का आलोक
कार्यक्रम का समापन विश्व प्रसिद्ध क़व्वाल मुकर्रम वारसी और उनके साथियों की महफ़िले क़व्वाली से हुआ। “तोरी सूरत के बल्हारी” और “छाप तिलक सब छीनी” जैसी क़व्वालियों को जब रामचरित की संवेदना में बाँधा गया, तो वह संगीतमयी रात अध्यात्म के चरम तक पहुँच गई।
सहिष्णुता और एकता का संदेश
कार्यक्रम का कुशल संचालन समीना अली सिद्दीकी ने किया। अंत में डॉ. मेहदी ने कहा, “यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि यह भारतीय विविधता में एकता, सौहार्द्र और साझी विरासत का जीवंत प्रतीक है।”
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